उसके ख्याल में

सोचता हूँ  मैं जिसको अक्सर ख्याल में
अंजान हूँ मैं अभी तक उसके ख्याल में


लाख कोशिशें की बयां हाल ए दिल का
अब तक नाकाम,सोच जवाब मलाल में


छाई  वो  बादल सी मेरे दिल ए गुजर में
ना जाने  कब वो बरसेगी मेरी मीनार में


नींद नहीं अब आती है बिस्तर  सेज पर
रातों को खूब सताए मुझे नींद जहान में


घूँघरु की खनक सी खनकती वो हरदम
गूँजे शँख की गूँज सी वह  कर्णपटल में


राही से खोये रहने लगे उन्ही की राहों में
आदत सी हो गई है ,उन्हें सोचे ख्याल में


नेस्तनाबूद करती हैं मंद मधु मुस्कराहटें
नजर बीन सी कीलती मुझे प्रेम बयार में


अंजुमन में  आँखे ढूँढें जान ए जिगर को
बुझी सी महफिल रहे,सनम गैरहाजिर में


कब बदलेंगे  स्वप्न मेरे हकीकत  रूप में
बदलेगी कायनात  हमसफर रहगुजर में


सोचता हूँ  मैं जिसको अक्सर ख्याल में
अंजान हूँ  मैं अभी तक उसके ख्याल में


       सुखविंद्र सिंह मनसीरत


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