गली-गली मचइले बारें शोर रे,
सियरू ठाढ़ भइलें फेरू कर जोड़ रे।
गइलें वादा कई, रोजी पेढ़ाइब,
पानी आ जवानी के, राह धराइब।
ढ़रकत आजो अंउसहीं, लोर रे,
सियरू ठाढ़ भइलें फेरू कर जोड़ रे।
बिलड़ा आ हुंअरा कुछुओ ना कइलस,
लूट लूट धन सब, तिजोरी में धइलस।
भाग रहल बा जवनियाँ, गांव छोड़ रे,
सियरू ठाढ़ भइलें, फेरू कर जोड़ रे।
कहे पैनाली छोड़ऽ, लड़ल जात पर,
पूछा सवाल, रोजगार जस बात पर।
कबले रहबऽ चुपचाप, मुंह मोड़ रे,
सियरू ठाढ़ भइलें, फेरू कर जोड़ रे।
दिलीप पैनाली
सैखोवाघाट
तिनसुकिया
असम