संस्कृति और सभ्यता को भूल रही है नई पीढ़ी

सुषमा त्रिपाठी शुक्ला


आज ‌आधुनिक युग में मानव ने जीवन के हर क्षेत्र में ही नया कीर्तिमान स्थापित किया है | विज्ञान ने आज मानव को कहां से कहां पहुंचा दिया है | इसका आंकलन नहीं किया जा सकता है | विज्ञान के ही भरोसे आज के मानव ने सफलता के कई झंडे गाड़े हैं | परंतु अपने चकाचौंध में आज का मनुष्य अपने जीवन में होने वाली सबसे बड़ी क्षति को भूल रहा है | समाज में उच्च स्थान पर बैठा हुआ मानव आज अपने बुजुर्गों को सम्मान नहीं दे पा रहा है | नई पीढ़ी तो सम्मान बिल्कुल ही नहीं देना चाहती | आज की पीढ़ी नई सोच के घोड़े पर सवार होकर जल्द से जल्द आसमान को छू लेना चाहती है |  परंतु यह अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलती चली जा रही है | घर के बुजुर्गों को भी घर का पुराना सामान समझा जाने लगा है , और आजकल के बच्चे तो बिल्कुल भी बुजुर्गों का सम्मान नहीं करना चाहते हैं | आज जिस तरह से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ा है ऐसे परिवारों के बच्चे अपने माता पिता तक ही अपना परिवार सीमित मानते हैं उनमें संस्कार की कमी आ रही है | इसका एक कारण और भी है आज के माता-पिता के पास इतना समय नहीं है को बैठकर बच्चों को संस्कारित करें , उनको अपने बुजुर्गों के बारे में बताएं कि यही बुजुर्ग है जिन्होंने पाल-पोसकर हम को बड़ा किया है | उन बुजुर्गों का महत्व माता पिता बच्चों को नहीं बताते हैं तो बच्चे भी उन बुजुर्गों को न जानते हैं ना जानने का प्रयास करना चाहते हैं |सत्य यह है इन्हीं बुजुर्गों के कारण हमने संसार देखा है इन्हीं से हमारा अस्तित्व है | आज के बुजुर्ग जो कि हमारी कृपा पर आश्रित है इनको हमारी कृपा की आवश्यकता नहीं है | यह कृपा के नहीं बल्कि सम्मान के हकदार हैं | परंतु आज की चकाचौंध भरी दुनिया में किसी के पास भी इतना समय नहीं है कि इन बुजुर्गों के अस्तित्व की रक्षा करे  या इनके विषय में अपने बच्चों को बताये जो कि आने वाले समय के लिए घातक ही होगा | ऐसा भी नहीं है कि एकल परिवारों में ही बच्चे बुजुर्गों का सम्मान नही करना जानते हैं। बदलती सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था में संयुक्त परिवारों में पलने वाले बच्चों में भी बुजुर्गों के प्रति आदर का भाव कम हुआ है क्योंकि अब बच्चे दादा-दादी व नाना नानी की कहानियां सुनना नहीं चाहते। उनका घर के सदस्यों से संवाद नाममात्र का या फिर काम (स्वार्थ) से संबंधित रह जाता है। किसी भी रिश्ते की समझ, प्यार व मान-सम्मान तभी पैदा होता है जब उस रिश्ते के साथ रहें, उसके साथ उठें-बैठें, बातचीत करें। लेकिन जब बच्चे बड़े बुजुर्गों के साथ रहते ही नहीं हैं तो उनके मन में बुजुर्गों के लिए न तो कोई प्यार है और न ही उन्हें बुजुर्गों के मान सम्मान का कुछ पता है। ऊपर से माता-पिता व अभिभावकों की भागदौड़ से भरपूर जिंदगी, एकल परिवारों की बढ़ती संख्या, बच्चों को बुजुर्गों से दूर कर रही है। वास्तविकता यह है कि बुजुर्ग के पास अनुभव का अपार खजाना उपलब्ध है , अगर बच्चे बुजुर्गो की छत्र-छाया में अपना जीवन गुजारें तो उनमें सभ्यता- संस्कृति की समझ आएगी और इसके साथ ही असंख्य अन्य गुण व अच्छी आदतें भी सीख जाएंगे।यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाएं और उन्हें यह भी बताएं कि इस देश व उनके लिए बुजुर्ग कितने आवश्यक व मूल्यवान हैं।


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