सजा मैं काटता

 


 


 


 



मैं खुदा नहीं वरना तुझे जन्नत की सारी खुशी बांटता
पानी के बहाव से ज्यादा तेज तेरे लफ्ज़ में था
मैं तुझसे नजरे ना मिलाता तो ......
तेरी बात क्या काटता


मैंने जिंदगी काटी थी कभी महलों में
आज सड़कों पर हूँ राताें काे गुजारता
तू भी रहा मौजूद तब भी जिंदगी खफा है
अफसोस नहीं होता अगर .......
तू गुनाह करता और सजा मैं काटता


बस लगवाई थी तेरी तस्वीर जेल में
आया था कोई आशिक बन कर
फिर क्या ......
रहा नहीं वह वरना उसकी जिंदगी से
उसकी सांसों का हिसाब काटता


काश! तू जिन्दा हाेता....
तेरी मेरी कहानी सबकाे थी पता
फिर भी काेई ना कुछ कह पाता
तू भी चल रहा था मस्त
और मैं भी खुद काे आशिकी में गुजारता ....!!


---शिवम् मञ्जू
   (फ़िराेज़ाबाद)


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