साहित्यिक पंडा नामा:१७


                  -भूपेन्द्र दीक्षित


"तुमने जब पकड़ा था चिड़िया को
उसकी चोंच में कुछ तिनके थे
और पेड़ पर लटका था
उसका अधूरा घोंसला। 


चिड़िया गिनती नहीं जानती
इसलिये बरसों का हिसाब नहीं रखती
पर एक बात वह समझती हैं कि
जब वह नई-नई पिंजरे में बंद हुई थी
आँगन में खूब धूप आती थी
और दूर दिखाई देता था उसका पेड़।


चिड़िया के देखते ही देखते
हर ओर बड़ी-बडी़ इमारतें खडी हो गई
जिनके पीछे उसका सूरज खो गया 
और खो गया वह पेड़ जिस पर 
चिड़िया एक सपना बुन रही थी"(क्रांति)
अधूरे सपनों की कहानी है नारी ।नारी के मन में बहुत सारे चिड़ियों से ख्वाब छुपे रहते हैं ।विधाता की सबसे सुंदर कल्पना है नारी ।सृष्टि की सबसे सुंदर रचना है नारी। इस सृष्टि में सबसे कोमल कल्पना है नारी ।आज का यह साहित्यिक पंडानामा नारी के अधूरे सपनों के नाम ।
ईश्वर करे हर नारी का सपना पूरा हो। सारी सृष्टि के कार्य संभालते संभालते वह अपने मन का भी कुछ कर सके। और अपने हिस्से की खुशी जी सके, अपने हिस्से की धूप सेंक सके ।अपने हिस्से का ख्वाब पूरा कर सके।पुरुष अक्सर उसके ख्वाब और दर्द समझने में भूल करते हैं।काश वे उसे समझ पाएं,तो सृष्टि की आधी समस्याएं समाप्त हो जाएं।


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