चल उठ निद्रा आलस्य छोड़,
अब प्रात:होने वाली है।
नित नमन करें धरती मां का,
जग भरती जो खुशिहाली है।।
स्मरण करें गुरु मातु पिता का,
पद रज माथे ले आशीष सदा।
बल बुद्धि आयु यश कीर्ति बढ़े।
नित नव मंगल गृह रहे सदा ।।
नित कर दर्शन करना ना भूलें,
कर मध्य विराजे चतुरानन।
कर मूल विराजे मातु शारदा,
कर अग्र भाग लक्ष्मी दर्शन ।।
धरु ध्यान भवानी जगदम्बा का
जप नाम विघ्नहर श्री गणेश का।
स्नान ध्यान अर्पण जल दिनकर,
कर नमन सदा शिव शंकर का।।
नित शिव अज विष्णु त्रिदेवों को,
मन से मन का अर्पण करना।
तर्पण करना कुल पितृदेव का,
सब तन मन धन अर्पण करना।।
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जारी.......
सुरेन्द्र दुबे
(अनुज जौनपुरी)