हक़ दिया था पूर्णता का।
मन रहस्यी गूढ़ता का ।।
फिर नहीं स्वीकार हिस्से ।
ओ ! पिया क्यों दूर मुझसे ?
प्रश्न ही नही तुम हो उत्तर।
तुम विभा का प्रेम अवसर।।
वो मिले ना सांध्य किस्से ।
ओ! पिया क्यों दूर मुझसे?
है रहस्यी लौ पिया तू ।
छवि है धूमिल दर्पणों की।।
तू बता ना मिलेगा मुझसे।
ओ! पिया क्यों दूर मुझसे?
तू विचारों का है नभ मन।
स्वर्ण आभा सा उदित तन।।
क्यो दिया तू दर्द गुच्छे ।
ओ !पिया क्यों दूर मुझसे ?
वंदना सिंह 'त्वरित'