सांचे में अपने मुझको ढा़ल कर छोड़ दो
ऐसा न हो कि तुम संभाल कर छोड़ दो
बाद के फिर दिलासों का क्या फायदा
मुझको बस तुम मेरे हाल पर छोड़ दो
अब ये तुम सोच लो आना चाहो अगर
सुन लो आने की दो चार शर्तें मगर
आ जो जाओ तो जाना नहीं होगा फिर
साथ होगा निभाना ये सारी उमर
एक महल तेरे ख्वाबों का बनाउंगा मैं
तुम जो रूठी अगर तो मनाउंगा मैं
सांस टूटेंगी पर टूटेगा रिश्ता नहीं
सात जन्मों तलक ये निभाउंगा मैं
विक्रम कुमार
मनोरा , वैशाली