कुछ कुछ कहती है

मेरी लाली मेरे लबों की
कुछ कुछ कहती है
कभी हंसती तो कभी रोती है
छुपा के रखती है न जाने कितने राज
फिर भी  मुस्कराती इठलाती है
मेरी लाली मेरे लबों की
कुछ कुछ कहती है
प्यार  चाहत और  मोहब्बत
सभी को तो छुपाती है
हंसती है गुनगुनाती है इतराती है
मेरी लाली मेरे लबों की
कुछ कुछ कहती है
खामोशियों में तन्हाइयों में भी
गुमसुम चुपचाप सो हो जाती है
कहे कुछ अनकहे अल्फजो को दोहराती है
मेरी लाली मेरे लबों की
कुछ कुछ कहती है✍️
                      गीत शैलेन्द्र


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