ग़ज़ल


 


 


 


दे के वो दर्द-ए-ज़िगर अश्क़-ए-रवानी देगा। 
ऐसे वो मुझको  मुहब्बत  की निशानी देगा। 
***
हैं क़ैद आज भी दिल में वो रूहानी रिश्ते। 
कहें कैसे की दिल अब तुझको रिहाई देगा। 
***
समेटे इस क़दर ताउम्र उन एहसासों को। 
रब्त की डोर को अब दिल न ढिलाई देगा। 
***
निभाई है बड़ी शिद्दत से तेरी चाहत को। 
मेरी वफ़ा का असर तुझको दिखाई देगा। 
**
चाहत में जो हुआ अब तलक हांसिल यारों 
बता उन ज़ख्म का अब कौन दवाई देगा। 
***
कभी लिखे थे तूने ख़त जो मेरी चाहत में। 
वो एक एक हर्फ़ मुहब्बत की गवाही देगा। 
**
कहाँ हांसिल मुहब्बत में सकून होता है। 
ज़ख्म,अश्क़-ए-जिग़र दर्द-वो-जुदाई देगा। 
***
बहुत गहरा है इश्क़ और अश्क़ का रिश्ता। 
उम्र भर ज़ख्म-ए-ज़िगर मंज़र-ए-तबाही देगा। 
***
बहुत मासूम सा एक ख़्वाब आज दरका है। 
वक़्त के पन्नों पर बिख़रा वो दिखाई देगा। 
@@ मणि बेन द्विवेदी


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