दे के वो दर्द-ए-ज़िगर अश्क़-ए-रवानी देगा।
ऐसे वो मुझको मुहब्बत की निशानी देगा।
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हैं क़ैद आज भी दिल में वो रूहानी रिश्ते।
कहें कैसे की दिल अब तुझको रिहाई देगा।
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समेटे इस क़दर ताउम्र उन एहसासों को।
रब्त की डोर को अब दिल न ढिलाई देगा।
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निभाई है बड़ी शिद्दत से तेरी चाहत को।
मेरी वफ़ा का असर तुझको दिखाई देगा।
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चाहत में जो हुआ अब तलक हांसिल यारों
बता उन ज़ख्म का अब कौन दवाई देगा।
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कभी लिखे थे तूने ख़त जो मेरी चाहत में।
वो एक एक हर्फ़ मुहब्बत की गवाही देगा।
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कहाँ हांसिल मुहब्बत में सकून होता है।
ज़ख्म,अश्क़-ए-जिग़र दर्द-वो-जुदाई देगा।
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बहुत गहरा है इश्क़ और अश्क़ का रिश्ता।
उम्र भर ज़ख्म-ए-ज़िगर मंज़र-ए-तबाही देगा।
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बहुत मासूम सा एक ख़्वाब आज दरका है।
वक़्त के पन्नों पर बिख़रा वो दिखाई देगा।
@@ मणि बेन द्विवेदी