ग़ज़ल

 


रीता सिवानी


ये बुतों सी ख़ामुशी अच्छी नहीं 
ज़िंदगी में हर घड़ी अच्छी नहीं 


ज़िंंदगी भगवान का वरदान है
 दुख से लड़िए ख़ुदकुशी अच्छी नहीं 


औरों को तकलीफ़ देकर जो मिले 
कैसी भी हो वो ख़ुशी अच्छी नहीं 


मिल न पाए रोटी दोनों जून की
 इस क़दर भी मुफ़लिसी अच्छी नहीं 


काम की हो बात ऐसी कीजिए
 फ़ालतू की बतकही अच्छी नहीं 


ज़िंदगी  ने तजरबा ये भी दिया
 अजनबी से दोस्ती अच्छी नहीं 


जागो बहनों ज़ुल्म हरगिज़ मत सहो 
'रीता' ऐसी बेबसी अच्छी नहीं


रीता सिवानी


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