डा. जहूर शैफियाबादी
खुलेआम दिन-रात बिकाता, ई का होता ।
महंगा-सस्ता बात बिकाता, ई का होता ।।
प्रजातंत्र के मोल गवा के, छी-छी, थू-थू।
धरम आ देखीं जात बिकाता, ई का होता ।।
कहाँ सपना बापू के पुरल कवनो, बोलीं ना ।
उनके नाम से घात बिकाता, ई का होता ।।
कहाँ बा आपन देश खड़ा, बतलाईं ना कुछ ।
महंगा नूनो-भात बिकाता, ई का होता ।।
मरत बा किसानों भूख से, अब देखीं ना ई ।
सुखारो में बरसात बिकाता, ई का होता ।।
सत्ता के बा बाजार गरम तब, सोंची ना कुछ ।
अबो थाती सौगात बिकाता, ई का होता ।।
डा. जहूर शैफियाबादी