नहीं तुझको है ग़र मुझसे तअल्लुक़ याद आये क्यों ,
कभी ख़्वाबों र्में याद आये कभी दिनमें सताए क्यों!!
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तेरी यादों को दिल से बेवफा अब मैं मिटा दूँगा,
निगाहों से गिरा कर के कोई दिल में बसाये क्यों..!!
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जिसे चाहा जिसे पूजा बसाया था जिसे दिल में ,
वही अब बेवफा़ हो बेरुखी़ से पेश आये क्यों..!!
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किया रब से नहीं शिकवा गिला कोई कभी मैंने ,
मगर वो हौसलों को मेरे हरदम आजमाए क्यों..!!
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पिलाये रोज आँखों से अगर तू जाम ऐ साकी़ ,
बुझाने तिश्नगी फिर मैकदे में रिन्द जाए क्यों!!
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उतर कर आसमां से चाँद धरती पे चला आया,
मगर रब ने ये दूजा चाँद धरती पे बनाए ये क्यों।।
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---- विद्या भूषण मिश्र "भूषण"----
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