सुषमा त्रिपाठी शुक्ला
इस संसार में प्रत्येक समाज में दुर्जन एवं सज्जन साथ - साथ निवास करते हैं | साथ - साथ रहते हुए भी सज्जनों ने अपनी मर्यादा का कभी त्याग नहीं किया , और इन्हीं साधु पुरुषों के कारण हमारा समाज निरंतर उत्तरोत्तर विकासशील रहा है | इस सकलसृष्टि में समस्त जड़ चेतन की भिन्न-भिन्न मर्यादायें स्थापित की गई हैं ,और सबको ही अपनी अपनी मर्यादा के अंदर ही रहने का दिशानिर्देश प्रकृति या उस परमपिता परमेश्वर के द्वारा प्राप्त हुआ है | विशेषकर समाज को प्रगतिशील बनाने वाले साधु पुरुषों के जीवन में मर्यादा का बहुत बड़ा महत्व होता है | क्योंकि एक बार प्रकृति में उपस्थित सभी जड़ चेतन अपनी मर्यादा का त्याग कर सकते हैं परंतु जो साधु पुरुष होते हैं वे अपनी मर्यादा का कभी त्याग नहीं करते हैं | इस उक्ति को स्थापित करते हुए आचार्य चाणक्य लिखते हैं:----- "प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः ! सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः !! अर्थात :- जिस सागर को हम इतना गम्भीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है ; परन्तु साधु अथवा श्रेठ व्यक्ति संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता | अतः साधु पुरुष सागर से भी महान होता है | उपरोक्त कथन का प्रमाण हमें राजा हरिश्चन्द्र एवं भगवान श्रीराम की जीवनगाथा में देखने को मिलता है | अपनी निर्धारित मर्यादाओं का पालन करने के कारण ही उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहा गया है | कभी कभी जीवन में न चाहते हुए भी ऐसे कार्य हो जाते हैं जिनका हमें पछतावा होता है | ऐसी स्थिति में सज्जन पुरुष उस बात को भूल जाना ही उचित समझते हैं | क्योंकि वे जानते हैं कि बीती बातों को याद रखकर कुढते रहना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है |
आज जिस प्रकार समाज अपने संक्रमण काल से गुजर रहा हैं उसके अनुसार साधु पुरुषों / सज्जनों की परिभाषा ही बदल गयी | और साथ ही बदल गई आज की मर्यादा | आज जो अच्छा बोल लेता हो , तर्क - वितर्क कर लेता हो वही विद्वान माना गया है | उसी को ज्ञानी कहते हैं | किसी की बात को सुनकर तुरंत जवाब दे देने वाला विद्वान कहा जाता है | आज के विद्वानों की मर्यादाओं के विषय में कुछ बताना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है | जैसा कि मैंने बताया कि कभी कभी जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जो कि हम नहीं चाहते हैं , ऐसी स्थिति में आज के कुछ तथाकथित लोग ( जिन्हें समाज विद्वान मानकर सम्मान की दृष्टि से देखता है ) उसी बात को लेकर वाद - विवाद करने लगते हैं | उस समय वे अपनी सारी मर्यादाओं का उल्लंघन करने से भी नहीं चूकते | मैं, ऐसे सज्जनों से मात्र इतना ही निवेदन करना चाहती हूँ कि :- जिस समाज में आप रहते हैं वह आपको सम्मान देता है , उसी समाज में आपके ऐसे कृत्य समाज को क्या संदेश पहुँचायेंगे ? चंदन में जिस तरह सर्प लटके रहने के बाद भी चंदन का स्वभाव नहीं बदलता उसी प्रकार सज्जनों को होना चाहिए ! परंतु आज के सम्माननीयों को देखकर कष्ट होता है | आखिर हम किस मर्यादा का पालन कर रहे हैं ??
आज जिस प्रकार धर्म एवं राजनीति से लेकर समाज के सभी क्षेत्रों में लोगों ने अपनी मर्यादाओं का हनन किया है वह आने वाले भविष्य के लिए घातक है |